कोटा के दशहरा मेले के अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में खूब जमा रंग

छोटी-मोटी झड़पों से जब सबक ना सीखे कोई तो एक युद्ध सीमा पार होना चाहिए….
कोटा के दशहरा मेले के विजयश्री रंगमंच पर देर रात तक अखिल भारतीय कवि सम्मेलन में खूब जमा रंग। हास्य कवियों ने गुदगुदाया तो वीर रस के कवियों ने घोला देष ने घोला देष भक्ति का जज्बा

शांत आसमान, टिमटिमाते तारों के बीच देर रात कोटा के राष्ट्रीय कवि अतुल कनक ने बार-बार जिसकों परखा हो उसे परखना कैसा, दुश्मन से दुश्मन जैसा व्यवहार होना चाहिए, छोटी-मोटी झड़पों से जब सबक ना सीखे कोई तो एक युद्ध सीमा पार होना चाहिए….सुनाकर पाकिस्तान पर कटाक्ष किया। मेला परिसर भारत माता की जय के उद्घोष से गंूज उठा। इसके बाद उन्होंने सूरज अपने तेवर ले जब आता है, पूर्व लाख सितारे हो अंबर में तारे छिप जाते है; गहन अमावस की देहरी पर जलता है जब दीपक, अंधकार के हत्यारे मंसूबे घबराते है….व्यथ को वाणि का वरदान देना सिहरना सद की सांसे सिहरने में, दुनियां में देवत्व दुविधा में हो तो पीछे मत हटना तू देहदान करने में….सुनाकर देहदान का संदेश दिया।

मौका था नगर निगम कोटा की ओर से आयोजित 123 वें राष्ट्रीय दशहरे मेले में शनिवार देर रात तक विजयश्री रंगमंच पर आयोजित अखिल भारतीय कवि सम्मेलन का। कोटा के ही कवि जगदीष सोलंकी ने मैं इस धरती की धडकन हूं, मैं मस्तक हूं हिमालय का, मैं मस्जिद की हूं मीनारो में, गूंबज हूं शिवालय का, इबादत हूं में गांधी की शहीदों की सहादत हूं, मेरा बरताव मत बदलो मैं आजादी की आदत हूं…जुबां से कुछ ना बोले पर तिरंगा जानता सब है….। सौगात में नहीं मिली हमको, खैरात में नहीं मिली हमको, बरसो तक बागी बने रहे, पांवो में बेडिया पड़ी रही मौत सिराने खड़ी रहीं, पीठ पर पर्वत ढोए है सीने पर गोलिया खाई है, तब मिली हमे आजादी…। कविता के माध्यम से आजादी किस तरह हासिल की यह बताई। मेला परिसर भारत माता के जयकारे गूंजायमान उठा। देर तक चले इस कवि सम्मेलन में देशभर से आए कवियों ने हास्य, व्यंग्य और ओज की कविताएं सुना देश के हालातों पर निशाने साधे। श्रंृगार की कविताओं का भी श्रोताओं ने खूब लुत्फ उठाया। रात करीब 10 बजे से शुरू हुए कवि सम्मेलन को सुनने शहर समेत हाड़ौती के गांवों कस्बों से भी बड़ी संख्या में लोगों का सैलाब उमड़ा।

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मेला अधिकारी व निगम आयुक्त राजेंद्र सिंह चारण ने बताया कि मुख्य अतिथि कोटा उत्तर विधायक प्रहलाद गुंजल, अध्यक्षता कर रहे पीपल्दा विधायक विद्याषंकर नंदवाना, विशिष्ठ अतिथि नगर विकास न्यास के अध्यक्ष रामकुमार मेहता, भाजपा शहर जिलाध्यक्ष हेमंत विजयवर्गीय, पूर्व अध्यक्ष भाजपा महेष विजयवर्गीय, पूर्व उप महापौर योगेंद्र खींची, भाजपा के वरिष्ठ नेता हनुमान शर्मा, इटावा नगर पालिका अध्यक्ष धर्मेद्र आर्य ने विधिवत मां सरस्वती के समक्ष दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम की शुरूआत की। महापौर महेश विजय, उप महापौर सुनीता व्यास, निगम आयुक्त शिवप्रसाद एम नकाते, मेला अधिकारी व निगम उपायुक्त राजेंद्र सिंह चारण, उपायुक्त राजेश डागा, मेला समिति के सह सचिव व सहायक लेखाधिकारी दिनेश कुमार जैन, मेला आयोजन समिति सदस्य पार्षद महेष गौतम लल्ली, नरेंद्र सिंह हाड़ा, रमेष चतुर्वेदी, मोनू कुमारी, मीनाक्षी खंडेलवाल, प्रकाश सैनी, भगवान स्वरूप गौतम, विकास तंवर, कृष्णमुरारी सामरिया, पार्षद महेष गौतम सोनू, धू्रव राठौड़, एसी भूपेद्र माथुर, मेला प्रभारी प्रेम शंकर शर्मा आदि ने अतिथियों व कवियों का माल्यार्पण कर स्वागत किया।

रात 10 बजे शुरू हुए कवि सम्मेलन में कवियित्री डॉ. अनुसपन ने हाथ जोड़ आपको शीष नवाउ…से सरस्वती वंदना कर कार्यक्रम की शुरूआत की। इंदौर के कवि सत्यनारायण सत्तन ने पैरोड़ी सुनाकर श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। देर रात तक चले कवि सम्मेलन में अरूण जैमिनी, कंुवर बैचेन, पूनम वर्मा, गोविंद राठी, विश्णु सक्सेना, लता हया व प्रदीप चोबे ने भी रचनाएं सुनाई। संचालन कवि विनीत चौहान ने किया।

दर्षक दीर्घा भी छोटे पड़ गए..
कवि सम्मेलन में इतनी तादाद में लोग आए कि मंच के सामने बने विशिष्ठ अतिथियों, पत्रकारो ंव पार्षदों के लिए बने दीर्घा भी ठसाठस भर गए। मैदान के बाहर भी सड़क पर खड़े रहकर लोग कविताएं सुनते रहे। जिन कवियों ने अच्छी कविताएं सुनाई उनका तालियों से स्वागत हुआ, वहीं कुछ को श्रोताजनों ने हूट भी किया। मंच के सामने आगे बैठने के लिए कई लोगों को पुलिस से मषक्कत भी करनी पड़ी। सुरक्षा की दृश्टि से पुलिस के व्याप्क बंदोबस्त नजर आए।

1957 से शुरू हुआ मेले में कवि सम्मेलन, रामधारीसिंह दिनकर भी आ चुक है यहां
123 साल पुरे कर चुके कोटा के राश्ट्रीय दशहरे मेले में अखिल भारतीय कवि सम्मेलन की शुरुआत वर्ष 1957 में हुई थी। तात्कालीन नगरपालिका अध्यक्ष शीतला प्रसाद माथुर व मेलाध्यक्ष वकील रामस्वरूप का काफी योगदान रहा। इतिहासविद् फिरोज अहमद बताते है कि उस जमाने में भी यहां हास्य, वीर रस व वर्तमान परिप्रेक्ष्य पर खूब कविताएं होती थी। कोटा के इस रंगमंच पर राश्ट्रीय कवि रामधारीसिंह दिनकर, काका हसरती, अल्हड़ बीकानेरी, हुल्लड़ मुरादाबादी, देवराज दिनेष, कवियित्री माया गोविंद जैसे ख्यातनाम कविगण भी आ चुके है। देर रात तक काव्य सरिता का खूब रंग जमता था।

– कमल सिंह यदुवंशी, मीडिया पॉइंट






देखकर आदमी के चेहरों को चुटकुले तक उदास हैं…

दशहरा मेले में शनिवार रात हास्य, प्रेम और वीर रस के नाम रही। रात जैसे-जैसे जवां होती गई, कविताओं की धार उतनी ही तेज होती गई।

नेताओं से लेकर अभिनेताओं तक हास्य कवियों के निशाने पर रहे। 56 इंच के सीने से लेकर सर्जिकल स्ट्राइक तक की शान में जमकर वीर रस बहा। इन सबके बीच प्यार की बौछारें भी कोटा के श्रोताओं को सुबह होने तक भिगोती रही।

श्रोताओं को बांधने के लिए मंच संभालते ही कवि विनीत चौहान ने नेताओं पर जमकर तंज कसे। पप्पू की खाट खड़ी करने से लेकर वे लाशों के ढेर पर बम फुड़वाने की साजिशों का खुलासा करने से नहीं चूके।

काव्य पाठ की शुरुआत गोविंद राठी ने की। उन्होंने शहीदों की चिताओं पर राजनीति की कोशिशों को धिक्कारते हुए काव्य पाठ किया ’56 इंच का सीना ऐसा ही नहीं हो जाता, गोली खानी पड़ती है सीने पे, बेबाएं शहीद का मस्तक बिलखती चूम लेती हैं, माएं उनकी वर्दी चूम लेती हैं, निर्मल हो जाता है नीर गंगा का जब उनकी अस्थियां जल को छू लेती हैं।’

इसके बाद मंच संभाला कोटा के कवि अतुल कनक ने, उन्होंने काव्य पाठ की शुरुआत चतुष्पदियों से की। तत्कालीन राजनीतिक हालत पर तंज करते हुए कविता पढ़ी ‘जुगनू की औकात तो देखो एक रात क्या चमका, सूरज से कहता है अपने गिरेबां में तो झांके।’

देश भक्ति पर सवाल उठाने वालों को जवाब देते हुए उन्होंने पढ़ा ‘बहुत प्रेम से समझाया पर वो ही ना माने, उत्पात जड़ों से ही उखाड़ देना चाहिए, इस माटी की मर्यादा से जिसको प्यार नहीं है उसको जिंदा गाढ़ देना चाहिए’।

अतुल ने कोचिंग के छात्रों को प्रोत्साहित करते हुए उनके लिए दिल छूने वाली कविता ‘व्यथा को वाणी का वरदान देना, सिहरना सद की सांसें सिहरने में, दुनिया में देवत्व दुविधाओं में हो तो, पीछे मत हटना देहदान करना’ का पाठ करते हुए भविष्य की संभावनाओं का वर्णन किया।

इसके बाद अरुण जैमिनी ने अरविंद केजरीवाल से लेकर तमाम बाबाओं पर जमकर तंज कसे। इसके बाद पूनम वर्मा और विनीत चौहान के आपसी तंज ने श्रोताओं को जमकर हंसाया।

इसके बाद उन्होंने गीत ‘किसी की याद की खुश्बू में भीगे केश लाई हूं, दिलों को जोडऩे वाले अमिट उपदेश लाई हूं’ सुनाकर श्रोताओं की जमकर वाहवाही लूटी।

इसके बाद मंच संभाला डॉ. विष्णु सक्सेना ने, उन्होंने एक के बाद एक मुक्तक सुनाकर जमकर वाहवाही लूटी। ‘तू हवा है तो करले अपने हवाले मुझको इससे पहले कि कोई और बहा ले मुझको आईना बनके गुजारी है जिंदगी मैंने टूट जाऊंगा बिखरने से बचा ले मुझको ‘ को जमकर सराहा गया।

हास्य कविता के चेहरे प्रदीप चौबे ने ‘देखकर आदमी के चेहरे को, चुटकुले तक उदास हैं यारो’ का काव्य पाठ किया। वहीं वीर रस की रसधार बहाते हुए विनीत चौहान ने ‘वर्ना जिस दिन हम चाहेंगे ये गर्व गुमान नहीं होगा, सेना ने जिस दिन ठान लिया ये पाकिस्तान नहीं होगा’ समेत कई रचनाएं सुनाकर रोम-रोम में सिहरन दौड़ा दी।

देश भक्ति की हिलोरों को ज्वार में तब्दील करते हुए सत्यनारायण सत्तन ने ‘उबाल जो है रक्त में उबालते चले चलो, आतंकवादियों के धड़ से सर उछालते चलो, स्वार्थियों से देश से निकालते चले चलो, सच्चे पहरेदारों को बिठालते चले चलो’।

वहीं लता हया ने ‘क्या करूं सच बोल दूं, होगा जो देखा जाएगा, राज दिल के खोल दूं.. हूं सियासत में तो फर्ज इतना है, नफरतें तो घोल दूं…’ और आखिर में वरिष्ष्ठ कवि कुंवर बेचैन ने ‘गमों की आंच पे आंसू उबालकर देखो, बनेंगे रंग किसी पर भी डालकर तो देखो, तुम्हारे दिल की चुभन भी जरूर कम होगी, किसी के पांव से कांटा तो निकालकर देखो’ गीत सुनाकर कवि सम्मेलन को अंजाम तक पहुंचाया।

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बार-बार जिसको परखा हो, उसे परखना कैसा, दुश्मन से दुश्मन जैसा व्यवहार होना चाहिए…

खचाखचभरी दर्शक दीर्घा और पीछे दूर तक खड़े श्रोताओं के बीच जब विजयश्री रंगमंच से कवियों ने अपनी रचनाएं पेश कर रहे थे। श्रृंगार रस की कविताओं को श्रोताओं ने बड़े शांत मन से सुना तो वीर रस की कविता पर भारत माता के जयघोष लगने लगे। हास्य कवियों ने भी श्रोताओं को गुदगुदाने में कोई कमी नहीं छोड़ी। कवि सम्मेलन में सर्जिकल स्ट्राइक और उसके बाद देश में गर्माई राजनीति पर खूब सुनाया गया।
कवि सम्मेलन की शुरूआत अनु सपन ने सरस्वती वंदना से की। उसके बाद गोविंद राठी ने कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए हास्य रस परोसा। फिर अतुल कनक ने सुनाया बार-बार जिसको परखा हो, उसे परखना कैसा, दुश्मन के साथ दुश्मन जैसा व्यवहार होना चाहिए। छोटी-मोटी झड़पों से जब सबक सीखे कोई तो युद्ध सीमा पार होना चाहिए। एक बार फिर हास्य कवि अरुण जैमिनी ने मंच संभाला और हरियाणवी अंदाज से लोगों को गुदगुदाया। मथुरा से आई पूनम वर्मा ने श्रृंगार रस सुनाया। जगदीश सोलंकी इंदौर के कवि सत्यनारायण सत्तन ने पैरोडी सुनाकर श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। देर रात तक चले कवि सम्मेलन में अरूण जैमिनी, कुंवर बेचैन, पूनम वर्मा, विष्णु सक्सेना, लता हया प्रदीप चोबे ने भीरचनाएं सुनाई। संचालन कवि विनीत चौहान ने किया। मुख्य अतिथि विधायक प्रहलाद गुंजल, विद्याशंकर नंदवाना,यूआईटी अध्यक्ष रामकुमार मेहता थे।