अखिल भारतीय मुशायरे में शायरों ने आज के हालात पर जमकर किए प्रहार

कभी खादी में रहता हूं, कभी वर्दी में रहता हूं, लुटेरा हूं, लुटेरों की महफिल में रहता हूं…

दशहरामेले में आयोजित अखिल भारतीय मुशायरा में सोमवार रात शायरों ने जैसे ही आज के हालात पर अपने कलाम पेश किए, श्रोताओं ने उन्हें खूब दाद दी। शायरों की रचनाओं को श्रोताओं ने बार-बार सुना। शायर पंकज पलाश ने किराए पर मां की कोख के बारे में शायरी सुनाते हुए कहा कि कहां से हम चले थे, कहां तक गए हम, मुझे इस दौर की उरमानिया हैरान करती है, कि मां की कोख को लेकर दुकां तक गए हम। इसी क्रम में माले गांव के मुजव्वर ने अपनी शायरी से लोगों को खूब हंसाया। वे बोल कभी खादी में रहता हूं, कभी वर्दी में रहता हूं, लुटेरा हूं, लुटेरों की महफिल में रहता हूं। देर रात शायरा डॉ. अंजुम रहबर ने जैसे ही जिंदगी का हिसाब हो जाऊं, शहर में ला जवाब हो जाऊं, कोरा कागज सही मगर तुम पढ़ो तो किताब हो जाऊं… पढ़ा तो पूरा मैदान श्रोताओं की तालियों से गूंज उठा। कार्यक्रम में शायरों ने शायरी के जरिए व्यंग्य के बाण छोड़ श्रोताओं को खूब गुदगुदाया। अंजुम ने …अपनी आवारा मिजाजी को नया नाम ना दो, तुझे दुनिया के साथ चलना है तू मेरे साथ चल पाएगा… इतने करीब आके सदा दे गया मुझे, मैं बुझ रही थी कोई हवा दे गया मुझे… कुछ दिन से जिंदगी मुझे पहचानती नहीं, यूं देखती है मुझे जानती नहीं, अंजुम पे हंस रहा है तो हंसता रहे जहां मैं बेवकूफियों का बुरा मानता नहीं… सरीखे शेर शायरी सुनाकर जमकर तालियां बटोरी। शायर शम्स तबरेजी ने घर के कुछ काम है सो दिल्ली की तैयारी है, कार दफ्तर की है और टूर भी सरकारी है… सुनाकर सरकारी व्यवस्था पर कटाक्ष किया। इससे पहले रात करीब पौने दस बजे मुख्य अतिथि यूआईटी के पूर्व अध्यक्ष हरिकृष्ण जोशी, विशिष्ट अतिथि डॉ. जफर मोहम्मद, भाजपा के वरिष्ट नेता रविंद्र सोलंकी, वक्फ बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष निमामुद्दीन बबलू, भाजपा नेता प्रद्युम्न सिंह पोमी, समाजसेवी वाहिद भाई, कार बाजार के अध्यक्ष मोहम्मद फारूख ने मुशायरे का विधिवत शुभारंभ किया। मंच पर महापौर पार्षदों ने अतिथियों शायरों का अभिनंदन किया।

जौहरकानपुरी ने …जीतने का ये हुनर भी आजमाना चाहिए, भाईयों से जंग हो तो हार जाना चाहिए… सुनाकर खूब श्रेताओं गुदगुदाया। इसके अलावा …मैं शायर हंू जो देखूंगा वो ही हर बार लिखूंगा, तुम्हे गद्दार लिखा है गद्दार लिखूंगा…गरीबों के नगर में जब भी कत्लेआम आम होता है… तुम्हारे ही इशारों पर चमन में आग लगती है, सियासत में वहीं आता है जिसके हाथ में बंदूक होती है… सुनाकर दाद पाई। देर रात शायरा सबीना अदीब, अना देहलवी, शम्स तबरेजी, ताहिर फराज, नुसरत मेहंदी, अशोक साहिल, इस्माइल नजर, रईस निजामी, माजिद देवबंदी, मंजर भोपाली, पंकज पजास रेहान फारूखी ने शेर, मतला नाते सुनाई। संचालन जिया टोकी ने किया।

– News Coverage : Dainik Bhaskar






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